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प्रसन्ना विथानागे की फ़िल्म 'पैराडाइज़': श्रीलंका के आर्थिक संकट के बीच पुलिसिया बर्बरता और एक वैवाहिक जीवन का बिखरना

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल लेख का है, Prasanna Vithanage’s Paradise: Police brutality and a marriage implosion amidst Sri Lanka’s economic collapse जो मूलतः को प्रकाशित हुआ था I

श्रीलंका के वयोवृद्ध स्वतंत्र फ़िल्म निर्माता प्रसन्ना विथानागे द्वारा लिखित और निर्देशित फ़िल्म पैराडाइज़, श्रीलंका में छुट्टी मनाने गए एक युवा भारतीय फ़िल्म निर्माता और उसकी पत्नी के वैवाहिक जीवन में बढ़ते मतभेदों के बारे में फ़िल्माया गया एक दिलचस्प ड्रामा है। कहा जाता है कि प्राचीन यूरोपीय व्यापारी इस द्वीप को पैराडाइज़ (स्वर्ग) कहते थे, यह एक ऐसी उपमा है जो आज भी पर्यटन उद्योग द्वारा लगातार और बार बार दुहराई जाती है, हालांकि फ़िल्म का शीर्षक वास्तविक रूप से व्यंगात्मक है।

बाएं से दाएं, श्री (सुमिथ इलांगो), केसव (रोशन मैथ्यू), अमृता (दर्शना राजेंद्रन) और मिस्टर मैथ्यू (श्याम फ़र्नांडो)। (फ़ोटोः पैराडाइज़) [Photo: Paradise ]

90 मिनट लंबी इस बहुभाषिक फ़िल्म का कालखंड जून 2022 का है, जिसके कुछ महीने पहले ही श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने देश को दिवालिया घोषित कर दिया था और देश अपने अधिकांश विदेशी कर्ज़ों को चुकाने में अक्षम हो गया था। सरकार ने इसके तुरंत बाद डीज़ल, गैस, राशन, और अन्य ज़रूरी चीजों की राशनिंग शुरू कर दी, जिसके कारण कोलंबो और पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन फूट पड़े थे।

केसव (रोशन मैथ्यू) और उसकी पत्नी अमृता (दर्शना राजेंद्रन) ने इस द्वीप की ख़राब अर्थव्यवस्था का फ़ायदा उठाने की सोच कर श्रीलंका के सेंट्रल हिल्स इलाक़े में एक चाय बागान में स्थित एक बंगले में अपनी शादी की पांचवीं सालगिरह मनाने का फैसला किया। यह बेहद ख़ूबसूरत और बहुत व्यवस्थित घर बड़े बड़े शहरों में हो रहे प्रदर्शनों से बहुत दूर है, लेकिन यह ग़रीबी में पिस रहे तमिल चाय बागान वर्करों के पुराने और भीड़ भाड़ वाले घरों की बस्ती के क़रीब है।

इस यात्रा में टूर गाइड के रूप में सहयोगी होता है मिस्टर एंड्र्यू (श्याम फ़र्नांडो), जोकि पहले एक बैंक कर्मचारी था और अब हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक विष्णु के अवतार भगवान राम के बारे में प्राचीन संस्कृत महाकाव्य रामायण में बताए गए ऐतिहासिक स्थलों को दिखाने के लिए स्थानीय गाइड और ड्राइवर के रूप में काम करता है।

किंवदंति के मुताबिक, इस द्वीप के राजा रावण ने राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लिया था और उसे श्रीलंका ले आया था। इसके बाद एक युद्ध शुरू हुआ और राम ने अंततः सीता को बचाया।

यह जोड़ा धार्मिक मिथकों के बारे में संदेहास्पद और अनिच्छुक होता है। फ़िल्म के अंत में अमृता मिस्टर एंड्र्यू से कहती है कि इस प्राचीन कहानी के 300 अलग अलग संस्करण हैं। शर्माते हुए वो स्वीकार करता है कि उसकी अपनी टूरिस्ट व्याख्या है।

हालांकि अमृता इस द्वीप की दिल को छू देने वाली प्राकृतिक सुंदरता के प्रति आकर्षित और अभिभूत हो जाती है और ख़ासकर एक जंगली हिरन से, जो अक्सर उनके बंगले के क़रीब दिख जाता है। हालांकि स्थानीय सरकार विरोधी प्रदर्शनों से जब कुछ ही देर के लिए उसका सामना होता है तो वो बेचैन हो उठती है और उनके बारे में और जानना चाहती है।

अपने पेशे में पूरी तरह उलझा केसव इन प्रदर्शनों से अछूता रहता और अमृता से उलट हिरन में उसकी बस इतनी दिलचस्पी होती है कि क्या बंगले के मैनेजर श्री (सुमित इलांगो) द्वारा इसे गोली मारी जा सकती और डिनर में इसे खाया जा सकता है।

जैसे ही यह जोड़ा श्रीलंका पहुंचता है, केसव को पता चलता है कि नेटफ़्लिक्स के लिए एक लोकप्रिय कोरियाई वेब सिरीज़ 'स्क्विड गेम्स' का हिंदी संस्करण बनाने के लिए उसकी कंपनी को चुना गया है।

पूंजीवाद की आलोचना से आकर्षित होकर पूरी दुनिया में दसियों लाख लोगों ने 'स्क्विड गेम्स' को देखा है, लेकिन केसव मौजूदा सामाजिक व्यवस्था की बर्बरता को और उजागर करने की कलात्मक चुनौती के लिए नहीं बल्कि इसकी वजह से होने वाले निजी मुनाफ़े की वजह से उत्साहित है। ख़बर मिलने के बाद वो कहता है, 'हम बहुत अमीर हो जाएंगे।' और बाद में अमृता को बताता है, 'मुश्किलों के दिन ख़त्म हो गए, अब हम ज़िंदगी का मज़ा ले सकते हैं।'

लेकिन उसी रात इस जोड़े की नींद तब खुलती है जब कुछ चोर लॉक तोड़कर उनके घर में घुस आते हैं और उनके मोबाइल फ़ोन और केसव का आइपैड चुरा ले जाते हैं। यह चोरी केसव के लिए तबाही वाली होती है क्योंकि 'स्क्विड गेम्स' के एपिसोड के लिए किए गए शुरुआती काम इसी आईपैड में होते हैं।

इसके बाद सुबह केसव स्थानीय पुलिस अधिकारी सार्जेंट बंडारा (महेंद्र परेरा) को अपराधियों को जल्द पकड़ने का आदेश देता है। वो धमकी देता है कि अगर सार्जेंट आईपैड और फ़ोन तुरंत बरामद नहीं करता तो वह भारतीय उच्चायोग से संपर्क करेगा।

सार्जेंट बंडारा (महेंद्र परेरा)। (फ़ोटोः पैराडाइज़) [Photo: Paradise ]

केसव की मांग घटनाक्रमों की एक पूरी शृंखला को जन्म देती है, जो उनके छुट्टियों के 'स्वर्ग' में सामाजिक रिश्तों की कलई खोल देता है और इस मध्यवर्गीय जोड़े को हमेशा के लिए एकदूजे से अलग कर देता है.

बंडारा ने पास ही बागान वर्करों की बस्ती से तीन तमिल युवाओं को हिरासत में ले लेता है और स्थानीय पुलिस स्टेशन में भारतीय जोड़े से उनको पहचानने को कहता है। शुरुआती झिझक के बाद केसव जोर देकर कहता है कि उनमें से एक ने चोरी की है। अमृता मुतमइन नहीं है और अपने पति के बयान को लेकर चिंतित रहती है।

अभियुक्त नौजवान खुद को निर्दोष बताता है लेकिन 40 साल के श्रीलंकाई पुलिस अधिकारी बंडारा को पता है कि अपराध कैसे स्वीकार कराया जाता है। असल में, यह तरीक़ा इतना आम है कि बंडारा भारतीय जोड़े को हवालात के पास रहने और उसे क़रीब से बात करने की इजाज़त देने में ज़रा भी सोचता नहीं है।

उन लोगों की पिटाई इतनी बर्बर होती है कि बाद में पुलिस गंभीर रूप से घायल नौजवान को पास के अस्पताल में ले जाने की कोशिश करती है लेकिन डीज़ल की कमी के कारण उनकी गाड़ी का तेल ख़त्म हो जाता है।

केसव, अमृता और मिस्टर एंड्र्यू इस बंद पड़ी पुलिस कार के पास से गुजरते हैं और घायल को अस्पताल पहुंचाते हैं। उसे ठीक करने की कोशिश नाकाम रहती है क्योंकि अस्पताल में बिजली कट जाती है और उसके जेनरेटर में तेल नहीं होता है और वो अस्पताल में ही मर जाता है

संदिग्ध युवा की हत्या को लेकर तमिल बागान वर्कर और उनके परिवार आक्रोषित होकर पुलिस स्टेशन को घेर लेते हैं और उस पर हमला कर देते हैं और बंडारा और अन्य पुलिसकर्मियों को वहां से भागने पर मजबूर करते हैं।

केसव, अमृता और मिस्टर एंड्र्यू, बंडारा के साथ अपने बंगले पर लौटते हैं, असल में बंडारा को इस भारतीय जोड़े की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया है। शराब के कुछ ग्लास खाली करने के बाद, बंडारा बंगला लूट मामले में अपनी जांच को आगे बढ़ाने का फैसला करता है।

कुछ ही मिनटों में बंडारा बंगले में काम करने वाले मुस्लिम खानसामा इक़बाल (अज़हर समसूदीन) की बेइज़्ज़ती करता है और तमिल मैनेजर श्री पर इस अपराध में शामिल होने का आरोप लगाता है। इस पर गुस्साए श्री का उससे झगड़ा हो जाता है और वो बंडारा को मार डालने की धमकी देता है। वो कहता है, 'तुमने निर्दोष लड़कों को उठाया और उन पर दोष मढ़ दिया। उनमें एक अब मर चुका है। और अब तुम यही काम मेरे साथ करने जा रहे हो?'

यह झगड़ा तूल पकड़ने ही वाला था कि इस बीच तमिल बागान वर्करों का एक समूह बंगले के सामने प्रदर्शन करते हुए पहुंच जाता है और उन पर हमला बोल देता है। इस हिंसक भिड़ंत का अंत दुखद होता है।

कुछ दिन बाद बंडारा, इक़बाल, श्री, अमृता और मिस्टर एंड्र्यू एक पुलिस अधिकारी के सामने उस भयानक घटना के बारे में अलग अलग बयान देते हैं। अगले दिन अमृता मिस्टर एंड्र्यू से पूछती है कि क्या उसने पुलिस को सही बयान दिया है। वो जवाब नहीं देता है, उसका मौन बताता है कि कुछ भी नहीं बदलने वाला। फ़िल्म रामायण पर्यटन स्थलों में से एक की अंतिम स्थायी छवि के साथ समाप्त होती है।

'पैराडाइज़' कई परतों वाली और दिल के तार छेड़ने वाली फ़िल्म है जिसमें कलाकारों ने बहुत अच्छा काम किया है। मलायम, अंग्रेज़ी, सिंहला और तमिल भाषाओं का कुशलता से इस्तेमाल किया गया है और ख़ास तौर पर भारतीय जोड़े और उनके गाइड और सार्जेंट बंडारा के बीच के संवाद बहुत ताक़तवर हैं और वर्गीय विभाजन और तनाव को बहुत बारीकी से सामने लाते हैं।

डायरेक्टर विथानागे रामायण पर्यटन उद्योग के व्यावसायीकरण की भी हवा निकाल देते हैं और इसकी बारीकियों के द्वारा सिनेमा के दर्शकों को ये सोचने पर मजबूर करते कि इस मिथक की पुनर्व्याख्या कैसे की जाती है और भारतीय और श्रीलंकाई धार्मिक बर्चस्ववादियों द्वारा अपने अपने राष्ट्रवादी विचारधाराओं को बढ़ाने के लिए इसका कैसे इस्तेमाल किया जाता है।

पूरी 'पैराडाइज़' फ़िल्म में, उस दौरान कोलंबो में महीने भर तक चले प्रदर्शनों का एक भी फुटेज नहीं है। इसमें आम लोगों की मुश्किलों और ख़ास तौर पर तमिल बागान वार्करों की दयनीय स्थिति- जोकि पहले और मौजूदा सरकारों के हमलों की वजह से है, को उजागर किया गया है और पूरी फ़िल्म में राज्य के ढांचे में अंतर्निहित राज्य संरक्षित पूर्वाग्रह ज़ाहिर होते हैं।

क़त्ल किए गए अपने बेटे के साथ तमिल बागान मां। (फ़ोटोः पैराडाइज़) [Photo: Paradise ]

क़त्ल किए गए अपने बेटे के शव को गांव की सड़क पर रख कर बिलखती हुई तमिल मां का छोटा सा सीन हो या स्थानीय अस्पताल में अपने बच्चे की मौत पर एक युवती की चीखों का दृष्य दिल को दहला देता है। उनकी चीखें उन हजारों अन्य लोगों की आवाज़ों की गूंज हैं जिनके बच्चे अलगाववादी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के ख़िलाफ 1983-2009 के गृह युद्ध के दौरान पुलिस दमन और सीधे सैन्य हमलों या सार्वजनिक स्वास्थ्य के खर्चों में सरकारी कटौती के कारण मारे गए हैं।

फ़िल्म इसे स्पष्ट करती है कि पुलिस द्वारा फंसाया जाना और पिटाई करना कोई अपवाद नहीं है बल्कि आम कारनामा है। सिर्फ साल 2023 में ही श्रीलंका के मानवाधिकार आयोग को पुलिसिया टॉर्चर की 200 से अधिक शिकायतें मिलीं।

बंडारा के लिए लोगों की ज़िंदगियां बहुत सस्ती हैं, जिसकी बस एक चिंता होती है कि कैसे अपराध के कबूलनामे पर हस्ताक्षर पाया जा सके। अगर 'पूछताछ' के दौरान एक संदिग्ध मर जाता है, तो वह दूसरों को हिरासत में ले लेता है।

अमृता के इस सवाल पर वो हैरान नहीं होता है कि क्या लड़के की मौत के लिए वे ज़िम्मेदार हैं। बंडारा कहता है, 'नहीं मैडम। वो आपकी और मेरी परेशानियों के लिए ज़िम्मेदार है।'

वो पूछती है, 'लेकिन क्या यह एक इंसानी ज़िंदगी नहीं है? क्या इसकी कोई क़ीमत नहीं है?'

बंडारा जवाब देता है, 'हां है। चुनाव के दौरान इनकी एक वोट की क़ीमत होती है।' और सिंहला में यही बात अपने साथी पुलिसकर्मियों से कहता है और सहमति में वे सब हंस देते हैं।

स्वाभाविक है कि बंडारा सरकारी तंत्र का एक छोटा सा प्यादा है। पिछले दिसम्बर में श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट ने ताज़ा ताज़ा नियुक्त हुए कार्यकारी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस देशबंधु टेन्नाकून और अन्य दो पुलिस अधिकारियों को, 2010 में हुई एक चोरी के मामले में एक अभियुक्त को टॉर्चर किए जाने का दोषी पाया था। टेन्नाकून मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए कुख्यात है और उसने ही 2022 में प्रदर्शनकारियों पर पुलिसिया दमन का आदेश दिया था।

'पैराडाइज़' एक मार्मिक और सराहनीय कार्य है और पिछले साल के अंत में दक्षिण कोरिया में बुसान इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल में इसके प्रीमियर के बाद मिले कई पुरस्कारों और आलोचनात्मक प्रशंसा की पूरी तरह से हक़दार है। अभी श्रीलंका में यह फ़िल्म दिखाई जा रही है और जुलाई में इसके रिलीज़ के बाद से इसे हज़ारों लोगों ने देखा है और अब यह भारत में अमेजॉन प्राइम पर उपलब्ध है। यह चैनल 4 पर बीबीसी के साउथ एशियन फ़िल्म सीज़न में दिखाई जाएगी और इस महीने के अंत तक ब्रिटेन और आयरलैंड में स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध होगी।

हालांकि विथानागे ने आर्थिक संकट और राजपक्षे शासन को उखाड़ फेंकने वाले बड़े पैमाने पर हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान पहली और एकमात्र फिल्म बनाई है, लेकिन 'पैराडाइज़' में दर्ज नाटकीय वर्गीय उत्पीड़न और नाइंसाफ़ी सिर्फ श्रीलंकाई सवाल नहीं हैं, बल्कि दुनिया भर में लाखों मज़दूरों और युवाओं के सामने आने वाली सामाजिक वास्तविकता का एक और पहलू है।

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